जब भी जी
चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग
एक चेहरे पे
कई चेहरे लगा लेते हैं लोग
याद रहता है किसे गुज़रे ज़माने का चलन
सर्द पड़
जाती है चाहत हार जाती है लगन
अब मोहब्बत
भी है क्या इक तिजारत के सिवा
हम ही नादां
थे जो ओढ़ा बीती यादों का क़फ़न
वरना जीने
के लिए सब कुछ भुला देते हैं लोग
जाने वो क्या लोग थे जिनको वफ़ा का पास था
दूसरे के
दिल पे क्या गुज़रेगी ये एहसास था
अब हैं
पत्थर के सनम जिनको एहसास ना हो
वो ज़माना
अब कहाँ जो अहल-ए-दिल को रास था
गायिका: लता
मँगेशकर
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