गुरुवार, २२ मार्च, २०१२

अजनबी

अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है 
कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है 

जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई, 
नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है 

शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है

हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है

दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की
आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।

-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
 

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