शुक्रवार, २६ ऑगस्ट, २०११

मुह की बात सुने हर कोई - निदा फाजली

मुह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन
आवाजों के बाज़ारों में खामोशी पहचाने कौन

सदियों सदियों वही तमाशा, रास्ता रास्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं, खो जाता है जाने कौन

वो मेरा आइना है या में उस की परछाई हूँ
मेरे ही घर में रहता है,मुझ जैसा ही जाने कौन

किरण किरण अलसाता सूरज, पलक पलक खुलती नींदें
धीमे धीमे पिघल रहा है, ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन 

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