बुधवार, २८ मे, २०१४

इतनी शक्ति हमें देना दाता- प्रार्थना

इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विष्वास कमज़ोर हो ना (२)
हम चलें नेक रस्ते पे हम से, भूल कर भी कोई भूल हो ना
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विष्वास कमज़ोर हो ना
हम चलें नेक रस्ते पे हम से, भूल कर भी कोई भूल हो ना
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विष्वास कमज़ोर हो ना

दूर अज्ञान के हों अँधेरे, तू हमें ज्ञान की रोशनी दे
हर बुराई से बचते रहें हम, जितनी भी दे भली जिंदगी दे
बैर हो ना किसी का किसी से, भावना मन में बदले की हो ना
हम चलें नेक रस्ते पे हम से, भूल कर भी कोई भूल हो ना
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विष्वास कमज़ोर हो ना

हम ना सोचें हमें क्या मिला है, हम ये सोचें किया क्या है अर्पण
फूल खुशियों के बांटे सभी को, सब का जीवन ही बन जाये मधुबन
अपनी करूणा का जस तू बहा के, कर दे पावन हर एक मन का कोना
हम चलें नेक रस्ते पे हम से, भूल कर भी कोई भूल हो ना
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विष्वास कमज़ोर हो ना..


Movie : Ankush (1986)
Singers : Pushpa pagdhare and Sushma Shreshtha,
Lyricist : Abhilash

शुक्रवार, २३ मे, २०१४

शेरो-शायरी- संग्रहीत

तेरी पहचान भी न खो जाए कहीं |
इतने चेहरे ना बदल, थोड़ी सी शोहरत के लिए ||



फुरसत में करेंगें तुझसे हिसाब - ए - जिंदगी |

अभी उलझे है हम, खुद को ही सुलझाने में ||



कटी पतंग का रूख था, मेरे घर की तरफ.....

मगर उसे भी लूट ले गये, ऊँचे मकान वाले.....



हादसों से तुम अगर घबराओगे,

एक दिन खुद हादसा बन जाओगे...
जानते हो पत्थरो का शहर है, फिर 
किस गली से आईने ले जाओगे...
समझते रहते हो सबको अपना मगर ,
अपनी तन्हाई कहा ले जाओगे...



बहुत दूर है मेरे शहर से तेरे शहर का किनारा;

फिर भी हम हवा के हर झोंके से तेरा हाल पूछते है।



चढ़ जाए तो फिर उतरता ही नहीं कमबख्त |

यह इश्क भी गरीब के क़र्ज़ जैसा है ||



हर वक़्त जिंदगी से गिले शिकवे ठीक नहीं...

कभी तो छोड़ दो कश्ती इन मौजो के सहारे...



तेरी नेकी का लिबास ही 

तेरा बदन ढकेगा ऐ बंदे...
सुना है ऊपर वाले के घर 
कपड़ों की दुकान नहीं होती...



हर बात पे रंजिश, हर बात पे "हिसाब" जैसे 

हमने "इश्क" नहीं, "नौकरी" कर ली हो तेरी ||



कहने को तो "हमदर्दों" की कमी नही है |

और हर "दर्द" इन हमदर्दों की "हमदर्दी" है ||




चंद सिक्को में बिकता है यहाँ ईमान लोगो का | 

कौन कहता है मेरे देश मे महँगाई बहुत है ||



मोहब्बत आजमानी हो, तो बस इतना ही काफी है |

जरा सा रूठ कर देखो, मनाने कौन आता है ||




वक़्त भी लेता है करवटें न जाने क्या क्या ।

उम्र इतनी तो नहीं थी जितने सबक सीख लिए हमने...।।



मस्जिद तो हुई हासिल हमको,

खाली ईमान गंवा बैठे ।
मंदिर को बचाया लढ-भीडकर,
खाली भगवान गंवा बैठे ।
धरती को हमने नाप लिया,
हम चांद सितारों तक पहुंचे ।

कुल कायनात को जीत लिया,
खाली इन्सान गंवा बैठे ।
मजहब के ठेकेदारों ने आज फिर हमे युं भडकाया ।
के काजी और पंडित जिन्दा थे,
हम अपनी जान गंवा बैठे ।




मै न बदला, मगर जमाना बदल गया ।
जानी गलियों में , मकान पुराना बदल गया...।।




बुलंदियों की ख्वाइशें तो बहुत है मगर...
दूसरों को रौंदने का हुनर कहाँ से लायें ||





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बुधवार, २१ मे, २०१४

सुविचार (Quotes)



















Source- http://www.entrepreneur.com/

गुरुवार, १ मे, २०१४

अर्धवट स्वप्नांचा प्रवास

स्वतःच्याच व्यक्तिमत्वाचे अनेक पैलू कळायला योग्य वेळ यावी लागते, अन अशी वेळ जेव्हा येते ना, त्यावेळी कधी-कधी विश्वासच बसत नाही. आपण असेही वागू शकतो-हे पचनी पडायला वेळ द्यावा लागतो. अशा अचानक घडणाऱ्या गोष्टींमुळे आपल्यात अनेक बदल होत असतात.

हरवलेल्या अन पुन्हा कधीही न सापडणाऱ्या काही स्वप्नांना आणि नात्यांना मन सतत आठवत असतं. माहित असतं कि आता काहीही परतून येणार नाहीये. या व्यवहारी आणि मायावी जगात देव (पावित्र्य) आणि देवत्व सांभाळण जितकं कठीण आहे, त्याहून अशा आठवणीतल्या नात्यांना (मन हलकं कराव म्हणून) उजाळा देताना योग्य व्यक्ती भेटणं महाकठीण आहे. देवतुल्य गुरुजन, जीवाला जीव देणारे मित्र-मैत्रिणी, गावाकडे शाळेत असताना आजी-आजोबांचा जिव्हाळा....... 
ह्या आठवणी जीवन जगताना खूप प्रेरणा देतात. मनाला एक अकल्पित शक्ती आणि स्फूर्ती देत असतात. काही अपूर्ण राहिलेली स्वप्नं काही काळ मनाला छळणारचं!!! पण म्हणतातना- काळ हा सगळ्या जखमांवरील जालिम उपाय आहे. जसा-जसा काळ पुढे सरकतो, तसं अर्धवट छळणाऱ्या सुरवंठरूपी स्वनांचं बळ देणाऱ्या (विविध रंगाच्या छटा असणाऱ्या) फुलपाखरांरूपी आठवणींमध्ये रुपांतर होत असतं!! अर्धवट स्वप्नांचा असा होणारा प्रवास निश्चितच फार सुखकर असा नसतो...पण तो तसाच व्हायला हवा. वि. स. खांडेकरांच्या "अमृतवेल" कादंबरीतील तो परिच्छेद हाच समर्पक उपदेश देणारा आहे.
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राहुल