रविवार, २३ सप्टेंबर, २०१२

Gulshan Ki Faqat Phoolon Se Nahi- Jagjit Singh

गुलशन कि फ़क़त फूलों से नहीं काटों से भी जीनत होती है,
जीने के लिए इस दुनिया में ग़म कि भी ज़रूरत होती है.
 वाइज़--नादां करता है तू एक क़यामत का चर्चा,
यहाँ रोज़ निगाहें मिलती हैं यहाँ रोज़ क़यामत होती है.
वो पुर्सिश--ग़म को आये हैं कुछ कह ना सकूं चुप रह ना सकूं,
खामोश रहूँ तो मुश्किल है कह दूं तो शिक़ायत होती है.
करना ही पड़ेगा जब्त--अलम पीने ही पड़ेंगे ये आंसू,
फरियाद--फुगाँ से एय नादाँ तौहीन--मोहब्बत होती है.
जो आके रुके दामन पे ‘सबा‘ वो अश्क नहीं है पानी है,
जो अश्क ना छलके आंखों से उस अश्क कि कीमत होती है.

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