रविवार, १५ फेब्रुवारी, २०१५

दर्द मिन्नत-कशे-दवा न हुआ - मिर्ज़ा ग़ालिब


दर्द मिन्नत-कशे-दवा न हुआ
(मिन्नत-कशे-दवा = obliged to medicine)
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ 
जमा करते हो क्यों रकीबों को
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ 
हम कहां किस्मत आजमाने जाएँ
तू ही जब खंजर आजमा न हुआ
कितने शीरीं हैं तेरे लब के रकीब
गालियाँ खाके बेमजा न हुआ
(शीरीं – sweet)
है खबर गर्म उनके आने की
आज ही घर में बोरिया न हुआ
(बोरिया = mat )
जान दी, दी हुई उसी की थी
हक तो यूँ है कि हक अदा न हुआ
कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं
आज ‘ग़ालिब’ गज़लसरा न हुआ
- मिर्ज़ा ग़ालिब